हिंदी भाषा की उत्पत्ति

हिंदी भाषा भारतीयों के लिए महत्त्वपूर्ण है। हिंदी भाषा को समझने के लिए हमें इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की ओर देखना चाहिए। हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ है और यह एक इंदो-आर्य भाषा है। हिंदी का महत्व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय भी बढ़ा। गांधीजी और अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हिंदी का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया और इसका समर्थन किया।

हिंदी भाषा की उत्पत्ति

हिंदी भाषा की उत्पत्ति का इतिहास भारत के सांस्कृतिक और भाषाई विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी भाषा भारतीय आर्य भाषाओं के अंतर्गत आती है और इसका विकास कई चरणों में हुआ है। हिंदी भाषा की जड़ें संस्कृत में मिलती हैं, जो भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र भाषा मानी जाती है। संस्कृत, विशेष रूप से वैदिक संस्कृत, वैदिक काल (1500 ई.पू. – 500 ई.पू.) से साहित्यिक और धार्मिक ग्रंथों की भाषा रही है।

भारतीय भाषाओं के विकास का आधार संस्कृत भाषा ही है और हिंदी भी इससे प्रभावित रही है। संस्कृत से कई प्राचीन भारतीय भाषाएं विकसित हुईं, जिन्हें प्राकृत कहते हैं। प्राकृत से अपभ्रंश भाषाओं का विकास हुआ, जो प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ी मानी जाती हैं। 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच अपभ्रंश का प्रचलन था। अपभ्रंश भाषाएँ वे रूप थीं, जो धीरे-धीरे स्थानीय बोलियों में बदल गईं और आधुनिक भारतीय भाषाओं का आधार बनीं। खड़ी बोली, ब्रजभाषा और अवधी जैसी हिंदी की कई बोलियाँ अपभ्रंश से निकलीं।

हिंदी भाषा के विकास के मुख्य चरण, आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल

1000 ई. से 1500 ई. तक के समय को आदिकाल कहा जाता है। उस समय साहित्य भी विकसित नहीं हुआ था। अपने विकास की शुरुआत में 1000 से 1100 ई तक हिंदी अपने अपभ्रंश के निकट ही थी। समय के साथ परिवर्तन हुआ और 1500 ई. आते-आते हिंदी भाषा अपने स्वतंत्र रूप में खड़ी हो चुकी थी। 1500 ई. के समय दोहा, चौपाई, छप्पय, दोहा, गाथा आदि छंदों की रचनाएं होना शुरू हो गई थी। मध्यकाल की अवधि 1500 से 1800 ई. तक थी। इस समय हिंदी भाषा में बहुत परिवर्तन अधिक परिवर्तन हुए थे।

फारसी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के लगभग 2500 शब्द, पश्तों भाषा के लगभग, 50 शब्द और तुर्की भाषा के 125 शब्द हिंदी की शब्दावली में जुड़ गए थे। उसे समय यूरोप के देशों के साथ व्यापार संपर्क भी बढ़ रहा था। इस वजह से पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अंग्रेजी शब्दों के कई शब्द हिंदी भाषा में शामिल हुए। 1800 ई से लेकर वर्तमान तक का समय आधुनिक काल के रूप में जाना जाता है। हिंदी भाषा के आधुनिक काल में देश में अधिक परिवर्तन हुए हैं। उसे समय अंग्रेजी भाषा का प्रभाव देश की भाषा और संस्कृति पर पढ़ने लगा था। अंग्रेजी शब्दों को हिंदी भाषा के शब्दों के साथ प्रयोग किया जाने लगा था। आधुनिक काल के चार प्रमुख उपकाल हैं तथा इन उपकालों में कई कवियों और साहित्यकारों ने हिंदी भाषा को समृद्ध किया।

हिंदी भाषा के साहित्य का विकास, आदिकाल, भक्तिकाल, रितिकल और आधुनिक काल

हिंदी भाषा का साहित्य चार प्रमुख कालों में बंटा हुआ है। ये काल क्रमश: आदिकाल, भक्तिकाल, रितिकल और आधुनिक काल हैं। आदिकाल को वीरगाथा काल भी कहा जाता है। आदिकाल समय का साहित्य वीरता और शौर्य की कहानियों पर आधारित था। भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है। भक्ति काल में भक्ति आंदोलन को शुरू किया गया था और धार्मिक साहित्यों की रचना इस काल में की गई थी। इस काल के प्रमुख कवि कबीर दास और गुरु नानक जी माने जाते हैं। रीतिकाल के समय में श्रृंगार रस और नायिका भेद को अत्यधिक प्रधानता थी। रीतिकाल के कवियों ने नायिका भेद प्रेम सौंदर्य जैसे विषयों पर अपनी रचनाएं की थी।

आधुनिक काल के चार प्रमुख उपकाल भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद और प्रगतिवाद है। भारतेंदु युग प्रमुख कवि और नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र की वजह से जाना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी में राष्ट्र प्रेम और समाज सुधार के विचारों को प्रस्तुत किया था इसी युग में हिंदी गद्य साहित्य का भी विकास हुआ था। द्विवेदी युग के प्रमुख लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य में नैतिकता और सुधारवादी दृष्टिकोण के बारे में लिखा था। छायावाद युग में प्रकृति, प्रेम और रहस्यवाद अपने चरम पर था। छायावाद के प्रमुख कवियों की बात करें तो इनमें जयशंकर प्रसादसुमित्रानंदन पंतसूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा को गिना जाता है। प्रगतिवाद का साहित्य समाजवादी विचारधारा से बहुत अधिक प्रभावित था। प्रतिवाद में मुख्य रूप से सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’नागार्जुनमुक्तिबोध, और त्रिलोचन मशहूर हुए।

उपसंहार

हम सभी को हिंदी भाषा के महत्व को समझने और समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हिंदी भारत के साथ दुनिया के अन्य कई देशों में भी बोली जाती है। हमें इसके साहित्य, संगीत, कला, और विभिन्न धार्मिक तथा सांस्कृतिक अधिकार को समझने और प्रसारित करने का प्रयास करना चाहिए। भारतीयों को हिंदी भाषा को प्रमोट करके हमारे देश की एकता को मजबूती देने का काम करना चाहिए, ताकि हम सभी भारतीय एक होकर आगे बढ़ सकें।