भारत के सामाजिक-आर्थिक मुद्दे

 

भारत विश्व का क्षेत्रफल अनुसार सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या अनुसार दूसरा सबसे बड़ा एक दक्षिण एशियाई राष्ट्र है। इसकी विकासशील अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में विश्व की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 1991 के बड़े आर्थिक सुधारों के पश्चात भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया तथा इसे नव औद्योगीकृत देशों में से एक माना जाता है। आर्थिक सुधारों के पश्चात भी भारत के समक्ष अभी भी कई सामाजिक चुनौतियाँ है जिनमें से प्रमुख सामाजार्थिक मुद्दे हैं: गरीबीभ्रष्टाचारनक्सलवाद व आतंकवादकुपोषण और अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा।

भारत में सामाजार्थिक मुद्दों से सम्बन्धित आँकड़ों का अभिलेख भारत सरकार का सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय रखता है। 1999 में स्थापित इस मंत्रालय का राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय हर वर्ष सामाजार्थिक सर्वेक्षण करता है जो कि दौरों के रूप में किया जाता है। इस सर्वेक्षण में थोड़े बहुत क्षेत्रों को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत को शामिल किया जाता है। जिन क्षेत्रों को इस सर्वेक्षण से बहार रखा जाता है उनमें सम्मिलित हैं नागालैंड के वे आंतरिक गाँव जो बस मार्ग से पाँच किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्‍थित हैं व अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के वे गाँव जो पूर्ण रूप से अगम्‍य हैं।[1

आर्थिक मुद्दे

गरीबी

भारत में गरीबी व्यापक है, देश में अनुमानतः विश्व के एक तिहाई गरीब निवास करते हैं। विश्व बैंक की 2010 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की पूरी आबादी का 32.7% हिस्सा अन्तरराष्ट्रीय गरीबी रेखा $1.25 के नीचे जीवन व्यतीत करता है और 68.7% आबादी प्रतिदिन $2 से भी कम में अपना जीवन निर्वाह करती है।

भ्रष्टाचार

भारत में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा है और इससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 2005 में कराए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि सफलतापूर्वक सार्वजनिक कार्यालयों में अपना काम निकालने के लिए 62% से भी अधिक भारतीयों को प्रत्यक्ष रूप से रिश्वत देने या किसी तरह के प्रभाव का सहारा लेने का अनुभव था। 2008 में इसी तरह की रिपोर्ट में पाया गया कि 40% भारतीयों को सरकारी कार्यालयों में रिश्वत देने या किसी तरह के निजी सम्पर्क का सहारा लेने का अनुभव था।[2] 2012 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार सूचकांक में शामिल किए गए 176 देशों में से भारत विश्व का 94वां सबसे भ्रष्ट देश था।[3] ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा जारी भ्रष्टाचार सूचकांक 2023 में भारत का रैंक शामिल किए गए 180 देश में 93 था जबकि 2022 में जारी किए गए सूचकांक में भारत का स्थान 85 था जो यह दर्शाता है कि भारत में निरंतर भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।

हिंसा

नक्सलवाद व आतंकवाद

भारत बहुत समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। गृह मंत्रालय के अनुसार आतंकवाद देश के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बना हुआ है। भारत के कई राज्य आतंकवाद या नक्सलवाद से प्रभावित रहे हैं, इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं: जम्मू और कश्मीरउड़ीसाछत्तीसगढ़झारखण्ड और उत्तर-पूर्व के सात बहन राज्य। 2012 में देश के 640 जिलों में से कम से कम 252 जिले विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से विभिन्न स्तर पर पीड़ित थे।[4]

आर्थिक असमानता किसी व्यक्तियों के समूह, आबादी के समूहों या देशों के बीच, स्थित आर्थिक अंतर को दर्शाता है। आर्थिक असमानता कभी-कभी आय असमानता, धन असमानता, या धन अंतर को संदर्भित करती है। अर्थशास्त्री आम तौर पर आर्थिक असमानता के अध्ययन हेतु तीन मापीय प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करते हैं: धनआय और खपत[1] आर्थिक असमानता का मुद्दा समानता के विचारों, परिणामों की समानता और अवसर की समानता के लिए प्रासंगिक है।[2]

आर्थिक असमानता समाज, ऐतिहासिक काल, आर्थिक संरचनाओं और प्रणालियों के बीच बदलती है। यह शब्द किसी भी विशेष अवधि में आय या धन के पार-अनुभागीय वितरण या लंबी अवधि के दौरान आय और धन के परिवर्तनों को संदर्भित कर सकता है।[3] आर्थिक असमानता को मापने के लिए विभिन्न संख्यात्मक सूचकांक हैं। एक व्यापक रूप से उपयोग सूचकांक गिनी गुणांक है, लेकिन कई अन्य विधियां भी हैं।

शोध से पता चलता है कि अधिक असमानता विकास की अवधि में बाधा डालती है लेकिन इसकी दर नहीं।[4][5] जबकि वैश्वीकरण ने वैश्विक असमानता (राष्ट्रों के बीच) को कम कर दिया है, इसने राष्ट्रों के भीतर असमानता में वृद्धि की है।[6]

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