रामायण के सुविचार

नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।।

रामचरित मानस में यह चौपाई उस समय को बताती है, जब भगवान राम सागर पार करने के लिए सागर से रास्ता मांगने के लिए ध्यान करने जा रहे थे। लक्ष्मणजी ने तब भगवान रामजी को उनकी शक्ति और क्षमता को याद दिलाते हुए कहा था कि आप स्वयं इतने शक्तिशाली हैं कि एक बाण में समुद्र को सुखा सकते हैं, फिर सागर से अनुनय-विनय क्यों? भगवान राम यह सब जानते थे लेकिन फिर भी इन्होंने शक्ति से पहले शांति से परिस्थितियों को हल करने का प्रयास किया और बताया कि शक्तिशाली को संयमी होना भी जरूरी है। आप अपने भरोसे पर काम कीजिए ईश्वर स्वयं आपकी सहायता करेंगे।

 

बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।

रामचरित मानस के बालकांड में भगवान विष्णु के रामावतार का कारण और भगवान की लीला का उद्देश्य समझाते हुए यहां भगवान शिव कहते हैं- कोई भी इस भ्रम में न रहे कि वह सर्वज्ञानी है या कोई हमेशा मूर्ख ही रहेगा। भगवान की जब जैसी इच्छा होती है, तब वह प्रत्येक प्राणी को वैसा बना देते हैं। इसलिए कभी किसी चीज का अहंकार नहीं करना चाहिए, जो अहंकार करते हैं। वह समाज में कभी आगे नहीं बढ़ पाते।

काम, क्रोध, मद, लोभ, सब, नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि, भजहुँ भजहिं जेहि संत।

विभीषणजी रावण को पाप के रास्ते पर आगे बढने से रोकने के लिए समझाते हैं कि काम, क्रोध, अहंकार, लोभ आदि नरक के रास्ते पर ले जाने वाले हैं। काम के वश होकर आपने जो देवी सीता का हरण किया है और आपको जो बल का अहंकार हो रहा है, वह आपके विनाश का रास्ता है। जिस प्रकार साधु लोग सब कुछ त्यागकर भगवान का नाम जपते हैं आप भी राम के हो जाएं। मनुष्य को भी इस लोक में और परलोक में सुख, शांति और उन्नति के लिए इन पाप की ओर ले जाने वाले तत्वों से बचना चाहिए।

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना॥

रामचरित मानस में भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता के संदर्भ में यह चौपाई मनुष्य को ज्ञान देती है कि मित्रता निभाने वाले की भगवान भी सहायता करते हैं। जो लोग मित्र या फिर दूसरों के दुख को देखकर दुखी नहीं होते, उन लोगों की मदद नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को देखने से भी पाप लग जाता है। जो लोग अपने दुख को भूलकर दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर स्वयं उसकी मदद करते है।

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